ज़िन्दगी है, ज़िंदा हैं, और दर्द न हो भला यह कैसे मुमकिन है?
बचपन में खिलौने टूट जाने का दर्द ,
स्कूल न जाना पड़े इस के लिए पेट में दर्द ,
अमरुद के पेड़ पर चढ़ना, और फिर पेड़ से
गिरजाने पर पुरे बदन में दर्द ,
छुट्टियों में घर जाना और
फिर छुट्टियों के ख़त्म होने का दर्द
परीक्षा सफल होने के बावजूद
एक विषय में कम नंबर आने का दर्द,
स्कूल ख़त्म होने पर दोस्तों से बिछड़ने का दर्द
............. जारी
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