Saturday, September 13, 2014

आज़ादी !

    जिस्म तो आज़ाद है, अब ज़हन भी आज़ाद हो,
आग में फ़िरक़ा परस्ती के ना  अब जलकर कोई बर्बाद हो. 

इसलिये इस मुल्क के हर शख़्स  पर लाज़िम है यह ,
    भाई चारे के सभी दस्तूर सबको याद  हो। 

एम जे राही। ……… 

Wednesday, September 10, 2014

उड़ान


सूर्य जैसा जल के देख ,
भीड़ से निकल के देख ,
रास्ता बदल के देख ,
और फिर तू चल के देख.

खुद में तू भी जान भर.
एक नई उड़ान भर।

काली रात के सितारे ,
जगमगा रहे हैं  सारे ,
कितने लग रहे हैं न्यारे ,
कुछ सिखा रहे हैं प्यारे,

खुद को तू भी चाँद कर,
 एक नई उड़ान  भर। ……………… …।

एम जे राही 

औरत यानि समाज की इज्ज़त

***औरत यानि समाज की इज्ज़त*** तू प्रेम में राधा बनी , गृहस्थी मे बनी जानकी..... अब तू भी अपना रूप बदल ..... कि अब बात है तेरे सुरक्षा और सम्...