. आदर्श_प्रेम
रात लग-भग आधी गुज़र चुकी थी, मोहल्ले के तमाम नवजात बच्चे भी अपनी माँ के सीने से लगकर सो रहे थे ,चांदनी रात थी ,चाँद की रौशनी के साथ-साथ माहौल में सन्नाटा भी पसरा हुआ था, खामोश खड़े दरख़्तों की पत्तियों ने आपस में मिलकर जैसे ही मोहब्बत की रागनी बजाई , आदर्श चींख पड़ा . और आदर्श की चींख से सारा मोहल्ला जाग गया।
आदर्श की चींख अब सिसकियों मे तब्दील हो चुकी थी , माँ सरहाने मे बैठी बालों मे ऊँगली घुमाते हुवे उम्मीद बांधते बोलती '' बेटा कुछ नही होगा तुम्हें '' सो जाओ रात काफी हो चुकी है , सुबह जल्दी उठना है, और खुद ही रो पड़ती।
जवान बेटे की इस हालत पर माँ का दिल रो कर चुप हो भी जाता , मगर मोहल्ले के लोगों के पास वह दिल कहाँ था जो रोज़ आदर्श को हो रही इस पीड़ा को महसूस कर सके।
………………जारी
………mjrahi
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