Thursday, October 9, 2014

आदर्श _प्रेम

                      .                 आदर्श_प्रेम 

                             रात लग-भग आधी गुज़र चुकी थी, मोहल्ले के तमाम नवजात बच्चे भी अपनी माँ के सीने से लगकर सो रहे थे ,चांदनी रात थी ,चाँद की रौशनी  के साथ-साथ माहौल में सन्नाटा भी पसरा  हुआ था, खामोश खड़े दरख़्तों की पत्तियों ने आपस में मिलकर जैसे ही  मोहब्बत की  रागनी  बजाई , आदर्श चींख पड़ा . और आदर्श की  चींख से सारा मोहल्ला जाग गया। 
 आदर्श की चींख अब सिसकियों मे तब्दील हो चुकी थी , माँ सरहाने मे बैठी बालों मे ऊँगली घुमाते हुवे उम्मीद बांधते बोलती '' बेटा कुछ नही होगा तुम्हें '' सो जाओ रात काफी हो चुकी है , सुबह जल्दी उठना है, और खुद ही रो पड़ती।
 जवान बेटे की इस हालत पर माँ का दिल रो कर चुप हो भी जाता , मगर मोहल्ले के  लोगों के पास वह दिल  कहाँ था  जो रोज़ आदर्श को हो रही  इस पीड़ा को महसूस कर सके।                                  
                                                                                                     ………………जारी 


………mjrahi

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