Monday, July 28, 2014

एक मोअम्मा है समझने का न समझाने का,
   ज़िन्दगी कहे को है ख्वाब है दीवाने का।.

   सदफ को गौहरे नायाब लिखना 
गलत है ज़िन्दगी को ख्वाब लिखना  . 

No comments:

Post a Comment

औरत यानि समाज की इज्ज़त

***औरत यानि समाज की इज्ज़त*** तू प्रेम में राधा बनी , गृहस्थी मे बनी जानकी..... अब तू भी अपना रूप बदल ..... कि अब बात है तेरे सुरक्षा और सम्...