Friday, October 15, 2021

औरत यानि समाज की इज्ज़त

***औरत यानि समाज की इज्ज़त***

तू प्रेम में राधा बनी , गृहस्थी मे बनी जानकी.....
अब तू भी अपना रूप बदल ..... कि
अब बात है तेरे सुरक्षा और सम्मान की....

पूरी दुनिया में नारी को जो इज्ज़त और सम्मान हासिल है यह किसी से छुपा हुआ नही है ,
  अगर बात सिर्फ भारत की की जाए तो यहां एक बड़ा तबका नारी यानि औरत को देवी के समान मानता है और कहीं लड़की के जन्म पर इसे रहमत तो कही लक्ष्मी का रूप मान कर जश्न मनाते हैं ।
 पहले की तुलना में आज लड़कियां शिक्षा के साथ साथ हर क्षेत्र में अच्छी खासी उपलब्धियां हासिल कर रही हैं, पुरुषों के साथ कांधे से कांधा मिलाकर हर क्षेत्र में किसी ना किसी पद पर कार्य कर रही हैं और और अपनी जिम्मेदारी को बहुत ही शानदार तरीके से निभा रहीं हैं बल्कि यूं कहें कि औरतें घर व ऑफिस दोनो को संतुलित तरीके से चला रही हैं तो कुछ गलत नही होगा।
मगर इन सबके बावजूद महिलाओं की सुरक्षा पर आए दिन सवालिया निशान लगते रहते हैं ।
इसका कारण आए दिन औरतों , बच्चियों पर हो रहे ज़ुल्म ओ सितम , अत्याचार, बलात्कार , गरैलू हिंसा में शारिरिक व मांसिक उत्पीड़न जैसे घोर और निंदनीय अपराध हैं ।
   यूं तो महिलाओं की सुरक्षा के लिए, उसे अत्याचार से बचाने और इंसाफ दिलाने के लिए कानून में कई सख्त नियम मौजूद हैं , फिर भी मुल्क के अलग अलग हिस्सों से दिल दहलाने वाली खबरें सामने आती रहतीं हैं , कहीं से महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा में शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की खबर आती है तो कहीं से महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर शर्मशार, और प्रतारित करने की खबर आती है तो कहीं बच्चियों के अपहरण, बलात्कार के बाद निर्मम हत्या की खबर इंसानियत को शर्मशार करके पुरुष प्रधान समाज के मुंह पर कालिख लेप जाती है।
   अब वक्त आ गया है की खासकर समाज का युवा वर्ग सरकार के साथ एक होकर इसका हल निकाले ताकि हमारी मां , बहन बेटियां महफूज़ और सुरक्षित रह सके।
और साथ ही लड़कियों , महिलाएं भी अपने आपको असहाय , कमज़ोर समझने के बजाए अपने सम्मान और हिफाज़त के लिए अपने अंदर आत्मविश्वाश पैदा करें तभी हालात मे सुधार या बदलाव आ सकता है।
   आज भी कई जगहों पर कुछ मनचले सड़कों पर आती जाती औरतों , लड़कियों को छेड़ते हैं , बद्तमीजी करते हैं, यही वजह है की लड़कियां कहीं भी दूर दराज या देर रात अकेले आने जाने से घबराती हैं, 
  कई जगहों पर लडकियों को उनके बॉस , वरिष्ठ या सहयोगी कर्मचारी बुरी नजर से देखते हैं , और उन्हें इस मानसिक उत्पीड़न के कारण तनाव झेलना पड़ता है।
  औरतें सिर्फ अपने घर ही नहीं बल्की समाज की इज्ज़त होती हैं , इसकी इज्जत और हिफाज़त की ज़िम्मेदारी समाज के हर एक वर्ग , जाति, मज़हब के हर एक इंसान पर फर्ज़ है ।
इंसान को समझना चाहिए............................ जारी.........

मौहम्मद जहांगीर राही

Friday, September 24, 2021

ये औरत कौन है ?

     औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया 

     जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्तकार दिया

एक औरत !

जिसका चेहरा संग ए मर्मर जैसा सफेद है, उसने अपने दुख सुख किसी से बांटे थे ,किसे के साथ मिलकर हसीन ख्वाब सजाए थे, किसी से सच्चा प्यार किया था , उसी प्रेमी ने सार्वजनिक कर दिए हैं उसके फोटो और प्रेम पत्र , वो फोन पर उससे बातें करते हुवे रो रही है और सीलिंग की कड़ी में दुपट्टा बांध रही है, 

ये औरत कौन है ?


एक औरत 

अपने खून से लत पत कलाई से अपने नाक से बहता  हुआ खून पोछते हुवे कसम खाते हुवे बोल रही है, मेरे अतीत में दूर दूर तक कोई नही है, पवित्र आग के धधकते हुवे सन्नाटे में पका हुआ मेरा देह सिर्फ आपकी की खातिर है, और कह रही है आप को जो जी आए करलो मेरे साथ बस मुझे किसी तरह जीने दो ,

ये औरत कौन है ?


एक औरत

सुहागन बने रहने के लिए  करवा चौथ का निर्जल व्रत भी करती हैं, सास और ससुर के हाथों मार दिए जाने का डर भी सहती हैं, 

ये औरत कौन है ?


एक औरत

 घुटती रहती है उन दीवारों के इर्द-गिर्द

जहाँ खिड़कियाँ तो हैं, पर वहां रोशनी का एक कतरा भी नहीं है 

ये औरत कौन है ?


एक औरत

पकाती रहती है गोल-गोल रोटियों के साथ रंग -बिरंगे ख़्वाब ये जानकर भी कि इधर रोटी आँच पर जाएगी और ख़्वाब पानी में ...

ये औरत कौन है ? 


एक औरत 

रगड़ती रहती हैं  कपड़ों का हर एक छोर जोर - जोर से ये सोचकर कि निकाल देंगी अपनी टीस, कुंठा और सारा क्रोध,

पर अचानक कपड़ों से गिरती बूँदों की तरह किसी कोने में टिप-टिप कर भिगो आती हैं अपने ही गाल ...

ये औरत कौन है ?


एक औरत 

पहनती है चटख रंग और नहीं भूलती माथे की बिंदी, माँग का सिंदूर , हाथों की चूड़ियां और पैर के बिछुए पर भूल जाती है अपनी ही खुशियाँ अपनी ही खूबियाँ अपनी ही पहचान !!

ये औरत कौन है ?


 ये औरतें पुरुष प्रधान देश और समाज में घर से बाहर तक हिंसा की शिकार होती  किसी पुरुष की मां , किसी की बेटी , किसी की बहन , किसी की बीवी तो किसी की बहु हैं मगर ऐसी घटनाएं जब जब सामने आती है तो पुरुषों की प्रधानता वाले चेहरे पर कालिख लगा जाती हैं फिर इस समाज को कोई फर्क नही पड़ता,

इसकी वजह सिर्फ ये है की इस हिंसा के पीछे खुद पुरूष प्रधान समाज का बड़ा किरदार है जहां औरतों  को हमेशा ही दोयम दर्जे का स्‍थान दिया गया है, और कुछ हद तक औरतें भी इसकी जिम्मेदार हैं जो खुद भी अपने ऊपर हो रही हिंसा को घर परिवार और समाज की बदनामी के भय से बर्दाश्त करने की आदि हो चुकीं हैं ,

   देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि देश में लगभग 5 करोड़ औरतें घरेलू हिंसा की शिकार हैं लेकिन इनमें से केवल 0.1 प्रतिशत औरतों ने ही इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है.

यही कारण है कि पुरूष प्रधान समाज में औरतों के प्रति अपराध तथा उनका शोषण करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती ही रही है. ईरान, अफगानिस्‍तान की तरह अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी औरतों के साथ भेदभावपूर्ण व्‍यवहार किया जाता है,और लग भग यही स्थिति पुरूष प्रधान समाज, देश भारत की भी है, 

आज कल यहां औरतों पर मौखिक( जुबानी) और भावनात्मक( जज़्बाती )  हिंसा आम बात होती जा रही है , जैसा कि बात बात में औरतों का अपमान करना, उसके चरित्र पर उंगली उठाना दोषारोपण करना , 

पुत्र या पुत्री ना होने पर औरतों को अपमानित करना, 

दहेज इत्यादि न लाने पर प्रतारित करना, 

नौकरी ना करने या उसे छोड़ देने के लिए उसे विवश करना, 

विवाह ना करने की इच्छा के विरुद्ध विवाह के लिए जबर्दस्ती करना,

 किसी विशेष व्यक्ति से विवाह करने के लिए विवश करना, आत्महत्या करने की धमकी देना, या ऐसे कई अन्य मौखिक दुर्व्यवहार करना.

मौखिक दुर्व्यवहार के साथ साथ शारिरिक हिंसा का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है 

 बात बात पर औरत थप्पड़ मारना, धकेलना या मारपीट करना, लात मुक्का मारना , या किसी और तरीके से जिस्मानी तकलीफ या नुकसान पहुंचाना , 

इसके आलावा ना जाने और कितने तरीके महिलाओं के साथ शारीरिक व मानसिक हिंसा के लिए प्रयोग किए जाते हैं जिसको लिख पाना भी मुश्किल है, 

यदि समय रहते ही इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो हम सब कालिख लगे चेहरे के साथ एक काले अंधेरे भविष में अपनी बे बसी पर आंसु बहाते और पछतावे की आग में धधकते हुए मिलेंगे

 क्यूंकि तब इसी हिंसा की शिकर हमारी , मां, बहन, बीवी , बेटी, या बहु हो रही होगी, 

इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है समाज में महिलाओं की अहमियत और उसके अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाई जाए , महिलाओं को शशक्त बनाया जाय, तभी समाज में शांति और समृद्धि आ सकती है क्योंकि ,,,,


वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात  में रंग 

 इसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ 


उठ मिरी जान ......


क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज 

हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज 

आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज 

हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज 

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे 


उठ मिरी जान.....


तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार 

तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार 

तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार 

ता-ब-कै गिर्द तिरे वहम ओ तअ'य्युन का हिसार 

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे 


उठ मिरी जान ......

तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है 

तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है 

पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है 

बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है 

ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे 

उठ मिरी जान ......

ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं 

नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं 

उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं 

जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं 

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे 

उठ मिरी जान ......

गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए 

फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए 

क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए 

ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए 

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे 

उठ मिरी जान .......

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं 

तुझ में शो'ले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं 

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं 

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं 

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे 

उठ मिरी जान.....

तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल 

ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल 

नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल 

क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल

राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे 

उठ मिरी जान ......

तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़ 

तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़ 

तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़ 

तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़ 

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे 

उठ मिरी जान .....

तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं 

तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं 

हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं 

मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं 

लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे 

उठ मिरी जान .......

Mjrahi


Wednesday, February 24, 2021

अधूरा इश्क़ !

           अब्दुल हई फ़ज़ल मुहम्मद ( साहिर लधियानवी ) 
        सहिर साहब ने अपने इश्क़ को कभी भी दुनिया के सामने जाहिर नहीं किया, और उन्होंने अपना हर इश्क़ अधूरा ही छोड़ दिया , शायद इसलिए कि वह साहिर बने रह सके।
 वहीं अमृता प्रीतम साहिर लुध्यानवी से अपने इश्क़ का इकरार करते हुए कहती हैं कि 
साहिर घंटों बैठा रहता और बस सिगरेटें फूंकता रहता और कुछ न कहता. उसके जाने के बाद में उन बचे हुए सिगरेटों के टुकड़े संभालकर रख लेती, फिर अकेले में पीती और साहिर के हाथ और होंठ महसूस करती. जब इमरोज़ के बच्चे की मां बनी तो बच्चे के साहिर के जैसे होने की ख़्वाहिश की.  ‘अगर इमरोज़ मेरे सर पर छत है तो साहिर मेरा आसमां.’ अमृता ने साहिर का बहुत इंतज़ार किया पर वे नहीं आए.

साहिर साहब भले ही अपने इश्क को दुनिया से छुपाते रहें हों मगर उनके कलम ने हमेशा उनके जज़्बात की तर्जुमानी की है , और अपने दिल की खलिश को कम करने के लिए उन्होन  कहा कि...
 ‘तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको.
 मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है...

 वैसे तो साहिर साहब के इश्क़ की बहुत खबरें चलीं मगर साहिर साहब का हर इश्क़ अधूरा ही रहा , लेकिन इश्क तो अमर होता है. इसे सरहदों, जातियों, मजहब या वक्त के दायरे में नहीं बांधा जा सकता. मोहब्बत की कहानियां, किरदारों के गुजर जाने के बाद भी जिंदा रहती हैं. ये एक ऐसी शय है कि इसके खरीदार जमाने के बाजार में हमेशा रहते हैं. 
आज भी इश्क के अफसाने लोगों में प्यार का जुनून पैदा कर देते हैं. इश्क के बारे में दिलचस्प बात ये भी है कि ये अक्सर मंजिल पर पहुंचते-पहुंचते लड़खड़ा जाता है. राह भटक जाता है। ऐसी मोहब्बत के लिए ख़ुद साहिर साहब ने लिखा था कि..
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन।
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा..

     कुछ लोगों का ऐसा भी मानना था कि साहिर साहब जान बूझकर अपने इश्क़ को अधूरा छोड़ देते थे जिससे कि वह अपनी शायरी में दर्द पैदा कर सकें. कहते हैं की इश्क़ का ताल्लुक़ दिल से होता है और इस अधूरे इश्क़ की वबा ने आखिर कार एक दिन सहिर साहब को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि ....

" किस दर्जा दिल शिकन थे मोहब्बत के हादसे 
हम ज़िन्दगी मे फिर कोई अरमां न कर सके "

28 Oct 1980 को साल की उम्र मे दिल दौरा पड़ने की वजह से साहिर साहब अपने अधूरे इश्क़ को छोड़ कर अपने चाहने वालों को अपने गीतों में छुपे गम के सहारे करके ये कहते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया कि.......

दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया है वो लौटा रहा हूँ मैं।।।।।
 

जज़्बात भी हिन्दू होते हैं,चाहत भी मुसलमां होती है
दुनिया का इशारा था लेकिन,समझा न इशारा, दिल ही तो है

बेदाद-गरों की ठोकर से,सब ख़्वाब सुहाने चूर हुए
अब दिल का सहारा ग़म ही तो है,अब ग़म का सहारा, दिल ही तो है..

औरत यानि समाज की इज्ज़त

***औरत यानि समाज की इज्ज़त*** तू प्रेम में राधा बनी , गृहस्थी मे बनी जानकी..... अब तू भी अपना रूप बदल ..... कि अब बात है तेरे सुरक्षा और सम्...