Sunday, July 23, 2017

" बेरंग होली "

यही हसरत थी दिल कि के तुम्हें अपना बनाते हम 
तुम्हारे साथ मिलकर प्यार की दुन्या बसाते हम | 

हमारे बाग़ की कोई कली जब फूल हो जाती ,
फिर बुलबुल को उसके वासते घर पर बुलाते हम | 

कई रंगों में रंग कर जब कोई तितली यहाँ आती ,
तो हर एक फूल को उसकी ज़ियाफ़त में लगाते हम | 

तेरी बेरंग होली थी , हमारी ईद फीकी है ,
किसी तेव्हार को तेरे बिना कैसे मनाते हम | 

नजर से दूर हो लेकिन हमारे दिल में रहते हो ,
हमारी साँसें तुमसे है यह कैसे भूल जाते हम | 

मेरी बाँहों में तुम भी मोम तरह पिघल जाते ,
मोहब्बत की तपिश भरकर ग़ज़ल ऐसी सुनाते हम | 


मो० जहांगीर राही

No comments:

Post a Comment

औरत यानि समाज की इज्ज़त

***औरत यानि समाज की इज्ज़त*** तू प्रेम में राधा बनी , गृहस्थी मे बनी जानकी..... अब तू भी अपना रूप बदल ..... कि अब बात है तेरे सुरक्षा और सम्...