यही हसरत थी दिल कि के तुम्हें अपना बनाते हम
तुम्हारे साथ मिलकर प्यार की दुन्या बसाते हम |
हमारे बाग़ की कोई कली जब फूल हो जाती ,
फिर बुलबुल को उसके वासते घर पर बुलाते हम |
कई रंगों में रंग कर जब कोई तितली यहाँ आती ,
तो हर एक फूल को उसकी ज़ियाफ़त में लगाते हम |
तेरी बेरंग होली थी , हमारी ईद फीकी है ,
किसी तेव्हार को तेरे बिना कैसे मनाते हम |
नजर से दूर हो लेकिन हमारे दिल में रहते हो ,
हमारी साँसें तुमसे है यह कैसे भूल जाते हम |
मेरी बाँहों में तुम भी मोम तरह पिघल जाते ,
मोहब्बत की तपिश भरकर ग़ज़ल ऐसी सुनाते हम |
मो० जहांगीर राही
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