"" मैं खुश हूँ ""
शाम का वक्त था मैं तालाब के किनारे बैठा न जाने किस जहान में खोया हुआ था कि पिछे से एक आवाज सुनाई दि , कैसे हैं आप ?,
ना सलाम ना दुआ ,
ना हाय ना हेल्लो ,
ना अदाब ना नमस्कार |
और जब मैने पीछे मुड़ कर देखा तो एक पुराना जाना पहचाना सा चेहरा दिखा | तकरीबन तीन साल बाद अचानक मेरा सामना उससे हुआ , जिसे देखते ही माजी कि तमाम करवाहटें मेरे दिल ओ दिमाग मे फैल गई और मेरी जुबान से बे साखता यह जवाब निकला |
" मैं खुश हूँ "
तुम अपनी फिक्र करो |
अपने बारे मे सोचा करो |
मेरे बारे मे तुमहे फिक्र करने कि कोई ज़रूरत नहीं है |
ऐसा लग रहा था जैसे यह जवाब उसके लिये मैने तैयार कर रखा था जो आज उसे देखते ही दे दिया मगर मैं खुद भी इस बात से हैरान था कि आखिर मेरी जुबान मे इतनी कड़वाहट कहा से आ गई , कौन मेरे अंदर इतनी कड़वाहट भर गया कि आज अपनी खबर पुछने वाले कि ही खबर ले ली |
फिर ख्याल आया कि आखिर उसकी जुबान से कड़वे बोल क्यूँ ना निकले जिसने तीन सालों तक लगातार किसी कि जुदाई का ज़हर पीया हो ? उसकी जुबान से तल्ख अल्फाज क्यूँ ना रवां हों ज़िस्के जज़बात को ज़खमी कर दिया ग्या हो ? उसकी कि आँखों मे नफरत के अंगारे क्यूँ ना भड़के ज़िसके हसीन ख्वाबों को झुलसा दिया गया हो ?
मैं इन्ही ख्यालों मे खोया था कि उसने कहना शुरू कर दिया कि आप अपनी जगह पर सही हैं , आपकी बेरुखी भी जाइज है आपका तंज भी बेवजह नहीं है और ना ही आपकी आँखो मे तेरती नफरत गलत है |
गलत हूँ तो सिर्फ मैं |
गलत है तो मेरी सोच |
गलत है तो मेरा प्यार |
गलत है तो मेरा विश्वास |
गलत है तो मेरा समाज |
गलत है तो मेरी सादगी |
गलत है तो मेरा इंतजार |
...... फिर भी मुझे मेरी गलत सोच पर गर्व है जो कभी बदली ही नहीं कि " मैं सिर्फ तुमहारी हूँ "
हाँ मेरा प्यार गलत है. मगर फिरभी तुम ही मेरा पहला और आखरी प्यार हो |
हाँ मेरा विश्वास ग़लत है मगर फिरभी मुझे लगता है कि तुम मेरी सांसों आज भी खून बनकर दौड़ते हो |
हाँ मेरा समाज गलत है मगर फिर भी मुझमे इतना होसला नहीं है कि मैं इसे बदल सकुं |
हाँ मेरी सादगी गलत है मगर आज भी सरहाने में रखी तुम्हारी तस्वीर को देखने से घबराती हूँ |
हाँ मेरा इंतजार गलत है मगर अब घुट घुट कर जीना अछा लगने लगा है |
हाँ मुझे याद है जब तुमने कहा था किसी कि खुशी का कारण बनो हिस्सा नहीं , किसी के दुख का हिस्सा बनो कारण नहीं | मैं जानती हूँ कि मैं तुमहारे दुख का हिस्सा नहीं बन पाई मगर मैं समाज के दुखों का कारण भी नहीं बन सकती थी | इसलिये मैने अपने आपको तुमसे अलग कर लिया , दुन्या ज़ानती है कि बासी फुल से पूजा नहीं कि जाती | ज़रूरत है कि तुम भी अपना नजरिया बदलो |
मैं तुमहारी थी
तुमहारी ही हूँ |
और तुमहारी ही रहूँगी |
यह मैं महसुस करती हूँ |
अगर तुम महसुस कर सको तो ..................
Md Jahangeer Rahi