कभी गाँव गाँव कभी शहर शहर
कभी शाम शाम कभी दोपहर
कभी बार बार कभी एक नज़र
कभी इस नगर कभी उस नगर
तुझे ढूंढ़ती है हर घड़ी
मेरी नज़र मेरी नज़र
तू जब मेरा हबीब था
मेरा औज पर नसीब था
मैं बड़ा ही खुश नसीब था
वो जमना भी अजीब था
मैं उन्हीं पलों को ढूँढता हूँ
आज फिर इधर उधर
मुझे फ़िरसे तू वो ख़याल दे
कि जमना जिसकी मिसाल दे
ये तो सब खुदा के है हाथ मॆं
वो उरूज दे या ज़वाल दे
ज़रा पास आके सोच ले
तू भी इन उरूज ओ ज़वाल पे
Md Jahangeer Rahi
#mjrahi
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