Monday, November 3, 2014

और फिर अचानक .....

    और फिर अचानक ........

जो तुमसे मुलाकात होती
तो तुम्हे आईना दिखाते
तुम्हे तुमसे रूबरू कराते
 कुछ सुनते , कुछ  सुनाते
कुछ बताते, कुछ याद दिलाते

फिर पूछते तुमसे......

क्या देखा ?
कौन था ?
किस से मिले ?
क्या सुना ?
क्या याद आया?

तब.......

सर्द आहों के दरमियाँ
गर्म आंसुओं की दो धाराऐं
तुम्हारी आँखों से बह कर
तुहारे दिल पर जमी तज़बज़ुब के गर्द व गुबार धोकर
हवा होजाती।

और फिर अचानक .....

सिसकियों में दबी दबी आवाज़ में तुम कहती।
हाँ , मुश्किल था - बहुत मुश्किल था
अहद व वफ़ा का निभाना मुश्किल था
तुम्हारे साथ जाना मुश्किल था
सभी को छोड़ कर तुम्हे अपनाना मुश्किल था


................... …………………………… जारी




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