*** सिर्फ तुम ही तो नही। *** mjrahi
हाँ यह सच है कि मुझे तुमसे मुहब्बत है।
यह भी सच है कि मैं तुम्हारी चाहत हूँ।
पर…………
मेरी ज़िंदगी में चाहतों की कमी तो नही ,
रिश्ते और भी हैं,एक सिर्फ तुम्ही तो नही।
आओ। ……………
अपनी ज़ात के एक और पहलु से मिलाऊँ तुम्हें ,
मैं क्या हूँ कैसी हूँ आज बताऊँ तुम्हें।
अपनी माँ की तरबियत हूँ मैं ,
इज़्ज़त हूँ अपने पापा की ,
मान हूँ अपने भाई का ,
परछाई हूँ अपने बहन की।
तो। ….......
बहक जाऊं मैं यह कभी मुमकिन ही नही ,
दिल यह सब भी तो रखता है सिर्फ तुम ही तो नही।
राधिका की शायरी को साहिल बड़ी ख़ामुशी और इतमीनान से सुने जा रहा था।
उसे लगा कि राधिका जब अपनी शायरी मुकम्मल करेगी तो उसका सवाल होगा
कहो शायरी कैसी लगी ?
और वह बहुत खूब , बहुत खूब कह कर उसकी शायरी की दाद देगा।
उसके अंदाज़ की तारीफ़ करेगा।
उसकी हौसला अफ़ज़ाई करेगा।
मगर ऐसा कुछ भी नही हुआ।
ना राधिका ने अपनी शायरी की दाद चाही
और ना ही साहिल ने उसकी शायरी की सताइश की,
इन सब से अलग साहिल राधिका की शायरी के मायने ओ मतलब तलाशने लगा।
राधिका की शायरी से माहोल में खामोशी छा गई थी।
दोनों एक दूसरे को महवे हैरत ताके जा रहे थे ,
किसी में इतनी जुर्रत न रही के किसी कुछ पूछ ले।
आखिर कार राधिका ने हिम्मत जुटाई और साहिल से मुखातिब होकर कहमे लगी.…कब तक! …………
आखिर कब तक हम हकीकत से मुंह चुराते फिरेंगे ,
कब तक झूठी तसल्ली के सहारे ज़िंदगी गुज़ारते रहेंगे ,
लहरों के खिलाफ जाने में ना तो सरक्षा है और ना ही होश्यारी।
दुनया हमारे प्यार को कबूल नही करेगी ,
दुन्या की बात छोडो। ज़रा सोचो !
जब हमारे माता पिता को हमारे प्यार की खबर होगी तब उनपर पर क्या गुजरेगी ,
वह यह कभी स्वीकार नही करेंगे।
खैर उनकी छोडो
कुछ पल के लिए अगर मै खुद गर्ज़ बन भी जाती हूँ।
तो अगले पल ही मेरा ज़मीर मुझे हैरान करने लग जाता है
mjrahi