Tuesday, November 18, 2014

*** सिर्फ तुम ही तो नही। ***


               *** सिर्फ तुम ही तो नही। ***         mjrahi


हाँ यह सच है कि मुझे तुमसे मुहब्बत है।
यह भी सच है कि मैं तुम्हारी चाहत हूँ। 

पर………… 

मेरी ज़िंदगी में चाहतों की कमी तो नही ,
रिश्ते और भी हैं,एक सिर्फ तुम्ही तो नही। 

आओ। …………… 

अपनी ज़ात के एक और पहलु से मिलाऊँ तुम्हें ,
मैं क्या हूँ कैसी हूँ आज बताऊँ तुम्हें। 

अपनी माँ की तरबियत हूँ मैं ,
इज़्ज़त हूँ अपने पापा की ,
मान हूँ अपने भाई का ,
परछाई हूँ अपने बहन की। 

तो। …....... 

बहक जाऊं मैं यह कभी मुमकिन ही नही ,
दिल यह सब भी तो रखता है सिर्फ तुम ही तो नही। 

     राधिका की शायरी  को साहिल बड़ी ख़ामुशी और इतमीनान से सुने जा रहा था। 
 उसे लगा कि  राधिका जब अपनी शायरी मुकम्मल करेगी तो उसका सवाल होगा
 कहो शायरी कैसी लगी ? 
और वह बहुत खूब , बहुत खूब कह कर उसकी शायरी की दाद देगा। 
 उसके अंदाज़ की तारीफ़ करेगा। 
उसकी  हौसला अफ़ज़ाई करेगा। 
        मगर ऐसा कुछ भी नही हुआ। 
 ना राधिका ने अपनी शायरी की दाद चाही
 और ना ही साहिल ने उसकी शायरी की सताइश की,
      इन सब से अलग साहिल राधिका की शायरी के मायने ओ मतलब तलाशने लगा। 
 राधिका की शायरी से माहोल में खामोशी छा गई थी। 
 दोनों एक दूसरे को महवे हैरत ताके जा रहे थे ,
किसी में इतनी जुर्रत न रही के किसी कुछ पूछ ले।
आखिर कार राधिका ने हिम्मत जुटाई  और साहिल से मुखातिब होकर कहमे लगी.…कब तक! ………… 
आखिर कब तक  हम हकीकत से मुंह चुराते फिरेंगे ,
 कब तक झूठी तसल्ली के सहारे ज़िंदगी गुज़ारते रहेंगे ,
 लहरों के खिलाफ जाने में ना तो सरक्षा  है और ना ही होश्यारी। 
 दुनया हमारे प्यार को कबूल नही करेगी ,
 दुन्या की बात छोडो।  ज़रा सोचो !
 जब हमारे माता पिता को हमारे प्यार की खबर होगी तब उनपर  पर क्या गुजरेगी ,
 वह यह कभी स्वीकार नही करेंगे। 
 खैर उनकी छोडो 
कुछ पल के लिए अगर मै खुद गर्ज़ बन भी जाती हूँ। 
तो  अगले पल ही मेरा ज़मीर मुझे हैरान करने लग जाता है 
     


mjrahi


Monday, November 3, 2014

और फिर अचानक .....

    और फिर अचानक ........

जो तुमसे मुलाकात होती
तो तुम्हे आईना दिखाते
तुम्हे तुमसे रूबरू कराते
 कुछ सुनते , कुछ  सुनाते
कुछ बताते, कुछ याद दिलाते

फिर पूछते तुमसे......

क्या देखा ?
कौन था ?
किस से मिले ?
क्या सुना ?
क्या याद आया?

तब.......

सर्द आहों के दरमियाँ
गर्म आंसुओं की दो धाराऐं
तुम्हारी आँखों से बह कर
तुहारे दिल पर जमी तज़बज़ुब के गर्द व गुबार धोकर
हवा होजाती।

और फिर अचानक .....

सिसकियों में दबी दबी आवाज़ में तुम कहती।
हाँ , मुश्किल था - बहुत मुश्किल था
अहद व वफ़ा का निभाना मुश्किल था
तुम्हारे साथ जाना मुश्किल था
सभी को छोड़ कर तुम्हे अपनाना मुश्किल था


................... …………………………… जारी




औरत यानि समाज की इज्ज़त

***औरत यानि समाज की इज्ज़त*** तू प्रेम में राधा बनी , गृहस्थी मे बनी जानकी..... अब तू भी अपना रूप बदल ..... कि अब बात है तेरे सुरक्षा और सम्...