Friday, September 24, 2021

ये औरत कौन है ?

     औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया 

     जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्तकार दिया

एक औरत !

जिसका चेहरा संग ए मर्मर जैसा सफेद है, उसने अपने दुख सुख किसी से बांटे थे ,किसे के साथ मिलकर हसीन ख्वाब सजाए थे, किसी से सच्चा प्यार किया था , उसी प्रेमी ने सार्वजनिक कर दिए हैं उसके फोटो और प्रेम पत्र , वो फोन पर उससे बातें करते हुवे रो रही है और सीलिंग की कड़ी में दुपट्टा बांध रही है, 

ये औरत कौन है ?


एक औरत 

अपने खून से लत पत कलाई से अपने नाक से बहता  हुआ खून पोछते हुवे कसम खाते हुवे बोल रही है, मेरे अतीत में दूर दूर तक कोई नही है, पवित्र आग के धधकते हुवे सन्नाटे में पका हुआ मेरा देह सिर्फ आपकी की खातिर है, और कह रही है आप को जो जी आए करलो मेरे साथ बस मुझे किसी तरह जीने दो ,

ये औरत कौन है ?


एक औरत

सुहागन बने रहने के लिए  करवा चौथ का निर्जल व्रत भी करती हैं, सास और ससुर के हाथों मार दिए जाने का डर भी सहती हैं, 

ये औरत कौन है ?


एक औरत

 घुटती रहती है उन दीवारों के इर्द-गिर्द

जहाँ खिड़कियाँ तो हैं, पर वहां रोशनी का एक कतरा भी नहीं है 

ये औरत कौन है ?


एक औरत

पकाती रहती है गोल-गोल रोटियों के साथ रंग -बिरंगे ख़्वाब ये जानकर भी कि इधर रोटी आँच पर जाएगी और ख़्वाब पानी में ...

ये औरत कौन है ? 


एक औरत 

रगड़ती रहती हैं  कपड़ों का हर एक छोर जोर - जोर से ये सोचकर कि निकाल देंगी अपनी टीस, कुंठा और सारा क्रोध,

पर अचानक कपड़ों से गिरती बूँदों की तरह किसी कोने में टिप-टिप कर भिगो आती हैं अपने ही गाल ...

ये औरत कौन है ?


एक औरत 

पहनती है चटख रंग और नहीं भूलती माथे की बिंदी, माँग का सिंदूर , हाथों की चूड़ियां और पैर के बिछुए पर भूल जाती है अपनी ही खुशियाँ अपनी ही खूबियाँ अपनी ही पहचान !!

ये औरत कौन है ?


 ये औरतें पुरुष प्रधान देश और समाज में घर से बाहर तक हिंसा की शिकार होती  किसी पुरुष की मां , किसी की बेटी , किसी की बहन , किसी की बीवी तो किसी की बहु हैं मगर ऐसी घटनाएं जब जब सामने आती है तो पुरुषों की प्रधानता वाले चेहरे पर कालिख लगा जाती हैं फिर इस समाज को कोई फर्क नही पड़ता,

इसकी वजह सिर्फ ये है की इस हिंसा के पीछे खुद पुरूष प्रधान समाज का बड़ा किरदार है जहां औरतों  को हमेशा ही दोयम दर्जे का स्‍थान दिया गया है, और कुछ हद तक औरतें भी इसकी जिम्मेदार हैं जो खुद भी अपने ऊपर हो रही हिंसा को घर परिवार और समाज की बदनामी के भय से बर्दाश्त करने की आदि हो चुकीं हैं ,

   देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि देश में लगभग 5 करोड़ औरतें घरेलू हिंसा की शिकार हैं लेकिन इनमें से केवल 0.1 प्रतिशत औरतों ने ही इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है.

यही कारण है कि पुरूष प्रधान समाज में औरतों के प्रति अपराध तथा उनका शोषण करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती ही रही है. ईरान, अफगानिस्‍तान की तरह अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी औरतों के साथ भेदभावपूर्ण व्‍यवहार किया जाता है,और लग भग यही स्थिति पुरूष प्रधान समाज, देश भारत की भी है, 

आज कल यहां औरतों पर मौखिक( जुबानी) और भावनात्मक( जज़्बाती )  हिंसा आम बात होती जा रही है , जैसा कि बात बात में औरतों का अपमान करना, उसके चरित्र पर उंगली उठाना दोषारोपण करना , 

पुत्र या पुत्री ना होने पर औरतों को अपमानित करना, 

दहेज इत्यादि न लाने पर प्रतारित करना, 

नौकरी ना करने या उसे छोड़ देने के लिए उसे विवश करना, 

विवाह ना करने की इच्छा के विरुद्ध विवाह के लिए जबर्दस्ती करना,

 किसी विशेष व्यक्ति से विवाह करने के लिए विवश करना, आत्महत्या करने की धमकी देना, या ऐसे कई अन्य मौखिक दुर्व्यवहार करना.

मौखिक दुर्व्यवहार के साथ साथ शारिरिक हिंसा का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है 

 बात बात पर औरत थप्पड़ मारना, धकेलना या मारपीट करना, लात मुक्का मारना , या किसी और तरीके से जिस्मानी तकलीफ या नुकसान पहुंचाना , 

इसके आलावा ना जाने और कितने तरीके महिलाओं के साथ शारीरिक व मानसिक हिंसा के लिए प्रयोग किए जाते हैं जिसको लिख पाना भी मुश्किल है, 

यदि समय रहते ही इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो हम सब कालिख लगे चेहरे के साथ एक काले अंधेरे भविष में अपनी बे बसी पर आंसु बहाते और पछतावे की आग में धधकते हुए मिलेंगे

 क्यूंकि तब इसी हिंसा की शिकर हमारी , मां, बहन, बीवी , बेटी, या बहु हो रही होगी, 

इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है समाज में महिलाओं की अहमियत और उसके अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाई जाए , महिलाओं को शशक्त बनाया जाय, तभी समाज में शांति और समृद्धि आ सकती है क्योंकि ,,,,


वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात  में रंग 

 इसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ 


उठ मिरी जान ......


क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज 

हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज 

आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज 

हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज 

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे 


उठ मिरी जान.....


तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार 

तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार 

तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार 

ता-ब-कै गिर्द तिरे वहम ओ तअ'य्युन का हिसार 

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे 


उठ मिरी जान ......

तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है 

तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है 

पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है 

बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है 

ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे 

उठ मिरी जान ......

ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं 

नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं 

उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं 

जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं 

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे 

उठ मिरी जान ......

गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए 

फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए 

क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए 

ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए 

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे 

उठ मिरी जान .......

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं 

तुझ में शो'ले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं 

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं 

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं 

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे 

उठ मिरी जान.....

तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल 

ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल 

नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल 

क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल

राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे 

उठ मिरी जान ......

तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़ 

तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़ 

तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़ 

तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़ 

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे 

उठ मिरी जान .....

तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं 

तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं 

हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं 

मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं 

लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे 

उठ मिरी जान .......

Mjrahi


औरत यानि समाज की इज्ज़त

***औरत यानि समाज की इज्ज़त*** तू प्रेम में राधा बनी , गृहस्थी मे बनी जानकी..... अब तू भी अपना रूप बदल ..... कि अब बात है तेरे सुरक्षा और सम्...